बौद्ध तीर्थस्थल


लाहौल-स्पिति व किन्नौर की दूरवर्ती घाटियों में बौद्ध परम्पराओं की मान्यता है। यहाँ के पहाड़ों में बहुत ही सुंदर बौद्ध मठ बनाये गये है जो कि बहुत लुभावने लगते है। यह बौद्ध धर्म की कला व साहित्य की समृद्ध विरासत है। इनके अन्दर बहुत सुंदर पुरातन कलाकृतियाँ हैं जिन्हें चटकीले रंगों से बनाया गया है। यह कलाकृतियाँ बहुत ही आकर्षक ढांचों में सजाई गयी हैं जिनके किनारों पर रेशमी धागे से सुंदर किनारियाँ बनाई गयी है।

धर्मशाला, जहाँ महामहिम दलाई लामा निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं एक अद्भुत तिब्बतियन शहर बन गया है, जहाँ तिब्बतियन संस्कृति पल्लवित हो रही है। यह वह केंद्र है जो शोधकर्ताओं और धार्मिक पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।

रिवालसर: रिवालसर शायद बौद्धों का सबसे धार्मिक स्थल है। यह स्थान मंडी से 20 कि.मी. दूर उत्तर पश्चिम में स्थित है। एक जनश्रुति के अनुसार गुरु पद्मसंभव यहाँ से बौद्ध धर्म का प्रचार करने के लिए तिब्बत गये थे। यहाँ झील के किनारे पैगोड़ा शैली का एक बहुत ही सुंदर मठ है।

रिवालसर

गुरु घंटाल मठ (3020 मि ): यह मठ चन्द्र-भागा नदी के दाहिने तट पर 4 कि.मी. की दूरी पर है जो कि लकड़ी से बना लाहौल-स्पिति का सबसे पुराना गोम्पा है जिनकी छतें शिखर शैली की बनी हुई हैं, जिन पर लकड़ी की सुंदर नकाशी की हुई है।यहाँ गुरु पद्मसंभव और ब्रिजेश्वरी देवी की मूर्तियाँ स्थापित की गयी हैं। जून के मध्य पूर्णिमा की रात को बौद्ध और ठाकुरों द्वारा संयुक रूप में एक महोत्सव मनाया जाता है जिसे "घंटाल" कहते हैं।

कर्दंग मठ (3500 मि ): यह मठ भागा नदी को पार कर केलोंग से 5 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। एक विश्वास है की यह मठ 12वीं शताब्दी में बनाया गया है। इस मठ में एक बहुत ही विशाल पुस्तकालय है जहाँ पर क्कन्ग्युर व त्न्ग्युर लिपि में बौद्ध साहित्य से तालुक रखने वाली पुस्तकें भोटी लिपि में लिखी गयी हैं। कर्दंग गाँव एक समय में लाहौल-स्पिति की राजधानी भी रहा है।

शशुर मठ:यह एक पहाड़ी पर केलोंग से उत्तर की ओर 3 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। जून-जुलाई के महीने में यह मठ आकर्षण का केंद्र बन जाता है, जहाँ हज़ारों की संख्या में दर्शक दैत्य नृत्य देखने के लिए आते हैं। इस की स्थापना 17वीं शताब्दी में हुई है। यहाँ पर स्थापित कलाकृतियों में 84 बौद्धों का इतिहास दर्शाया गया है।

त्युल गोम्पा (3900 मि ): केलोंग से 6 कि.मी. स्थित तयुल गोम्पा घाटी की सब से पुरानी मठों से एक है। यह स्थान यहाँ स्थित गुरु पद्मसंभव की लगभग 5 मी. ऊँची मूर्ति तथा क्युंगर पुस्तकालय के लिए प्रसिद्ध है। तिब्बतियन भाषा में तयुल का अर्थ है "चुना हुआ स्थल" इसके पीछे एक रोचक कथा भी है।

की मठ:यह स्थान काजा से 12 कि.मी. उत्तर में स्थित, स्पिति घाटी की पश्चिम घाटी के लोगों को समर्पित है। यह मठ घाटी के सबसे पुराने और बड़े मठों में शुमार है तथा की गाँव के उपर स्थित है। यहाँ बौद्ध धर्म से सम्बंधित पुस्तकें तथा भगवान बौद्ध और अन्य देवियों की कलाकृतियाँ हैं। लामा यहाँ नृत्य, संगीत और वाद्य यंत्र बजाने का अभ्यास करते हैं । लामाओं को यहाँ धार्मिक प्रशिक्षण दिया जाता है। यहाँ नैतिक आदर्शों से सम्बंधित पुस्तकें और मुखोटों का संग्रहण भी है।

की मठ

थांग युंग गोम्पा: यह गोंपा काजा से लगभग 13 कि.मी. उत्तर में स्थित है तथा स्पिति के मध्य भाग के लोगों को समर्पित है। काजा नालो की संकरी घाटी के किनारे एक सुनसान और शांत जगह पर स्थित इस मठ में प्राय: तिब्बत से आये हुए बौद्ध भिक्षु रहते है। इसके ऊपर एक लम्बा पठार स्थित है जो कि शिल्ला चोटी की ओर जाता है।

कुंगरी गोम्पा: अत्तार्गों से लगभग 10 कि.मी. दूर पिन घाटी में स्थित इस गोम्पे तक पहुंचने के लिए स्पिति नदी को पार करना पड़ता है। यह गोम्पा पिन घाटी के लोगों को समर्पित है।

धनखड़ मठ: यह मठ काजा के लगभग कि.मी. पूर्व में स्थित है तथा मध्य स्पिति के पूर्वी भाग को समर्पित है। धनखड़ जो कि एक बड़ा गाँव है तत्कालीन स्पिति राज्य की राजधानी रही है। यहाँ पहाड़ी की चोटी पर एक किला है जहाँ पुराने समय में कारागार हुआ करती थी। इस मठ में लगभग 100 लामा रहते हैं तथा यहाँ भोटी भाषा के बौद्ध धर्म के साहित्य सुरक्षित हैं। यहाँ का मुख्य आकर्षण "बैरोचन" की प्रतिमा है जिसमें पीठ से पीठ जोड़े हुए भगवान बुद्ध की चार आकृतियाँ हैं । यहाँ कलाकृतियों और चित्रकला के रूप में कुछ अवशेष भी हैं।

धनखड़ मठ

ताबो मठ: पूर्वी जनसंख्या को समर्पित यह एक अन्य अति प्रसिद्ध और बड़ा मठ है। यह 10वीं शताब्दी में बनाया गया था तथा काजा से 50 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। तिब्बत में थोलिंग गोम्पा के बाद इसकी प्रसिद्धी दूसरे स्थान पर आती है। यहाँ 60 बौद्ध भिक्षु रहते हैं । यहाँ बौद्ध साहित्य जो अजन्ता चित्रकलाओं से समानता रखते हैं का एक बहुत बड़ा संग्रह है।

नाको: गुरु पद्मसंभव के प्रसिद्ध पद चिन्ह लौत्साबाद मठ में संग्रहित हैं। किन्नौर जिले में ऊँचाई पर स्थित यह गाँव पारदर्शी झील के समीप स्थित है।

त्शिगंग गोम्पा: त्शिगंग गोम्पा पहुँचने के लिए खाब से न्यंग होते हुए पैदल रास्ते से जाना पड़ता है।

तिलासंघ मठ: याँग थांग से 12 कि.मी. पहले, का से 1 कि.मी. का पैदल रास्ता है।