हिमाचल मे एग्लिंग :-
समाज के अनेक वर्गो से संबधित असंख्य प्रकृति प्रेमिंयों के लिए एग्लिग एक मनोरन्जन का स्त्रोत है |
पश्चिमी देशो मे एग्लिंग को खेल के रूप मे चिकित्सा आधिकारियों द्धारा मान्यता दे गई तथा अधिक से अधिक लोग घरों से निकलकर इस शौक के लिए अपने कौशल को आजमा रहे है | 90 के दशक मे एग्लिंग ब्रिटिशो का मनपसंद खेल बीएन गया तथा इसी कारणवश विदेशी प्रजातीया जैसे कि ब्राउन ट्राउट और रेनबो ट्राउट भारतीय नदियों तथा धाराओ मे स्थानातरित कि गई | भारतीय जलो मे ट्राउट प्रजातिया न केवल स्थापित हुई , बल्कि अत्यधिक आक्सीजन वाले क्लो तथा अच्छी इकोलाजिक के कारण तेजी से विकास कर प्रजनन भी किया |
स्थानीय महाशीर (Tor putitora) के साथ विदेशी ट्राउट (Salmo trutta fario & Salmo gardnerii ) ने यूरोपीय एगंलर को मछ्ली पकड़ने के अति उतम अवसर उपलब्ध करवाये |
साहित्य मे हिमाचल प्रदेश के नदी नालो मे एगंलर या मछुआरों द्धारा पकड़ी गई मछ्ली का वर्णन किया गया है | वर्ष 1897 मे थामस मे “राड इन इंडिया “ नामक पुस्तक मे उत्तरी भारत कि नदियों मे अपने महाशीर पकड़ने के अनुभव का वर्णन किया | बाद मे इस अद्धितीय खेल के कारण अत्यधिक लोग इस महाशीर के खेल को पसंद करने लगे |
दो महत्वपूर्ण प्रकाशन “एगंलर इन इण्डिया” तथा “सरकम वैटिग द महाशीर” मे मछ्ली पकड़ने के स्थान तथा उपयुक्त कांटो के बारे मे सूचना दी गई थी | तत्पश्चात होरो ने 1957 मे प्रकाशनो कि एक शृंखला मे भारतीय क्रीडा मत्सियकी के इतिहास तथा नियमो का उल्लेख किया |
सीर खड्ड पर एगंलर (दाये से बाये कि ओर ):-
मियां मन सिह (नेक टाई पहने हुए ) लेफ्टिनैट गवर्नर पंजाब, एसआर मालकेएम हेली तथा लेडी गवर्नर (सौजन्य बिलासपुर – थ्रु दी सेक्ययूरिज पेज न0 568 लेखक मिस्टर शक्ति सिह चंदेल ) |
हिमाचल के जलों मे एगंलिग:-
हिमाचल प्रदेश की धाराओ को दो श्रेणियों मे बांटा जा सकता है:- सामान्य जल एवम ट्राउट जल | जो क्रमानुसार 2400 किलो मीटर तथा 600 किलो मीटर टीके लम्बे है | क्रमानुसार:-
प्रदेश की प्रमुख नदियां है :- ब्यास, सतलुज , रावी, तीर्थन, सेंज, ऊहल, बासपा, पब्बर, लमबाडग, गिरि, राणा, न्यूगल गज, बनेर, बाता इत्यादि |
इन नदियों मे पाई जाने वाली प्रमुख प्रजातियाँ है :-
ट्राउट, महाशीर, निमाकिल्स (Nimacheilus), बेरिलस (Barilus), साइजोथोरेसिड, क्रोसोकिल्स, गलिप्टोथोरेक्स प्रजातियाँ इत्यादि | इन न्दियों मे मछ्ली पकड़ना राज्य मत्स्यपालन अधिनियम के तहत व्यवस्थित है | ट्राउट जलों मे लाइसेंस केवल बंसी और डोरी द्धारा अनुमोदित है | परंतु सामान्य जलों मे दोनों बंसी सॉरी तथा कास्टनैट द्धारा मछ्ली पकड़ी जा सकती है | मत्स्य पालन विभाग ने ट्राउट और महाशीर की क्रीडा मात्सियकी को बढ़ावा देने हेतु निम्नलिखित हिस्सों की पहचान की है |
ट्राउट जल
नदी का नाम | खिंचाव | धारा लंबाई (कि0 मी0 मे ) |
ब्यास | कटराई से मनाली | 18 |
तीर्थन | लारजी से नागनी | 20 |
सेंज | लारजी से रोपा | 22 |
लंबाडग | बरोट से लोहारडी | 6 |
ऊहल | बरोट से --खड्ड | 10 |
रावी | होली से मुख्य पुल | 5 |
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महाशीर जल
नदी का नाम | खिंचाव | धारा लंबाई (कि0 मी0 मे ) |
ब्यास | सेरी मुगल से विनवा और ब्यास संगम तक | 5 |
ब्यास | हरसीपतन से ब्यास की सहायक नदी कुनाह के संगम तक | 10 |
ब्यास | चम्बापतन | 5 |
ब्यास | कुरान | 5 |
ब्यास | देहरा गोपीपुर | 10 |
ब्यास | बनेर | 5 |
गिरी | बाटा | |
हिमाचल मे सहासिक एगंलिग:-
हिमाचल प्रदेश देवताओ का निवास, बर्फ से ढका हुआ, पर्यटको का सपना होने के साथ- साथ एगंलरों के लिए स्वर्ग जैसा भी है| इसके उतर मे कुछ बेहतरीन ट्राउट धाराएँ है |
रोहड़ू: — घाटी मे पब्बर, सांगला घाटी मे बासपा, बरोट घाटी मे ऊहल, तथा कुल्लू घाटी मे ब्यास और उसकी सहायक नदिया ब्राउन ट्राउट तथा रेनब्रो ट्राउट मे समृद्ध है |
कांगड़ा घाटी की नदीया तथा धारायेँ महाशीर पकड़ने के लिए प्रसिद्ध है | इन नदियो मे 32 से 40 किलो मीटर लंबे एगंलिग स्पोस्ट है, जहाँ मछ्ली को आसानी से पकड़ा जा सकता है | एगंलिग से जुड़े नियम काफी उदार है तथा शुल्क भी नाममात्र है | प्रत्येक एगंलर लाइसेंस पीआर एक दिन मे 6 ट्राउट पकड़ सकता है | परंतु एक ट्राउट 40 सेंटिमीटर से कम आकार की नही होने चाहिए ट्राउट पकड़ना प्रत्येक वर्ष के एक नंबर से 28 फरवरी तक प्रतिबंधित होता है |
ट्राउट मछ्ली पकड़ना:-
हम पहले उन स्थानो नदियों व धाराओ की चर्चा करते है | जहाँ आसानी से ट्राउट को पाया जा सकता है
रोहड़ू :- शिमला से 120 किलो मीटर दूर पब्बर नदी के दाये किनारे पर मछ्ली पकड़ने का एक महत्वपूर्ण केंद्र है | यह ऊपरी धारा की ओर रोहड़ू से 50 किलो मीटर की दूरी पर पब्बर की सहायक नदी आंध्रा के बाये किनारे पर स्थित है |
चिड्गाव :- विश्राम करने के लिए आदर्श स्थान होने के साथ मछ्ली पकड़ने का प्रमुख केंद्र है | कुछ अन्य स्थान जहाँ मछ्ली पकड़ी जा सकता है , सीमा 5 किलो मीटर माडील 10 किलो मीटर, सांध्सु 70 किलो मीटर, टिकरी 21 किलो मीटर तथा धमवाडी 24 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है |
बासपा नदी हिमालयन पर्वत माला से उत्पन्न होकर सांगला या बासपा घटीऊ से होकर बहती है | सांगला घाटी पश्चिमी हिमालयकी सबसे खूबसूरत घाटियों मे से एक है | बासपा नदी झरनों की एक शृंखला बनाती है तथा इसमे ट्राउट के लिए बूथ सारे छोटे – छोटे तालाब है | ऊंचे पहाड़ों से घिरा तथा किन्नर कैलाश का शानदार दृश्य प्रदान करने वाला सांगला गाँव लोक निर्माण विभाग तथा वन विभाग के पूर्णत: सुसज्जित विश्रामगृहों के साथ मछ्ली पकड़ने के लिए एक सुविधाजनक स्थान हो सकता है | एक मंदिर, बोध गोम्पा तथा प्राचीन कमरु किला कुछ अन्य आकर्षण है , जिन्हे एगंलर को भूलना नही चाहिए| सांगला शिमला से 250 किलो मीटर दूर है तथा नियमित बस सेवा के साथ जुड़ा हुआ है | बरोट (मंडी), शिमला से 200 की0 मी0 तथा मंडी से 75 की0 मी0 की दूरी पर स्थित है| यह ना केवल खूबसूरत जलाशय तथा प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि ऊहल नदी जो ब्यास की सहायक नदी है मे पायी जाने वाली ट्राउट के लिए भी जाना जाता है मछ्ली पकड़ने के सबसे अच्छे स्थानो मे से कुछ इस प्रकार है :- लुहान्न्दी, पूर्ण हेचरी, लचकांदी , टिक्कर, बल्ह, तथा कमाँद | बीआरटी के अलावा, पंडोह बांध से लेकर ओट तक सम्पूर्ण जलाशय ट्राउट मछ्ली पकड़ने के लिए अच्छा माना जाता है|
हिमाचल की सबसे खूबसूरत घटियो मे से एक कुल्लू की घाटी मे ब्यास तथा उसकी सहायक नदियां जैसे कि – सरवरी, पार्वती, सजोन तथा फोजल ट्राउट मछ्ली पकड़ने के अच्छे अवसर प्रदान करती है | सेंज तथा तीर्थन नदिया लारजी के पास ब्यास नदी से मिलती है तथा ये भी प्रमुख ट्राउट धाराये है | मनाली से भून्न्तर तक कुछ बेहतरीन ट्राउट पकड़ने के स्थान है जैसे कि – पतलीकुहल, कटराई तथा रायसन | पतलीकुहल तथा बटाहर मे ट्राउट हैचरिया भी स्थापित की गई है | पार्वती नदी मे भी अनेक स्थानो पर ट्राउट पकड़ने के लिए उत्तम अवसर मिलते है| कुल्लू के लिए चंडीगढ़ से नियमित उडाने है |
महाशीर पकड़ने बारे – ट्राउट व्यंजनों के स्वादिष्ट आभार के बाद अब अपेक्षाकृत कम ऊंची कांगड़ा घाटी जो कि धौलाधार पर्वत माला के आँचल मे स्थित है तथा बारहमासी बर्फ से तथा फलों से पेड़ों से ढकी हुई है के बारे मे जन लेते है | कांगड़ा महाशीर के निवास के रूप मे पाया जाता है तथा विभिन्न एगंलर जो बड़ी मछ्ली पकड़ने मे दिलचस्पि रखते है, उन्होंने इस मछ्ली के बारे मे अनेक अनुभव प्रस्तुत किए है | ब्यास नदी तथा पोंगडेम मे एगंलरों के लिए कि आकर्षक केंद्र है | महाशीर के अलावा मल्ही, सोल, बचवा, सिंघारा इत्यादि भी उपलब्ध है | हालांकि, कि स्थानो पर तथा सहायक नदियों मे महाशीर उपलब्ध है, परंतु निम्नलिखित बीटों को बेहतरीन माना जाता है:-
सारी म्ररोग:- बिनवा नदी का ब्यास नदी के साथ संगम स्थल | यह जगह शानदार आकार को मछ्ली के लिए जानी जाती है , जहाँ पर कि घरे तालाब तथा पत्थरॉ मे छिपने के लिए स्थान बने है यहाँ पर पालमपुर, अदरेता तथा जयसिहपुर से पहुंचा जा सकता है | सारी मरोगा गाव से 3 कि0 मी0 लंबा 45 मिनट तक का पैदल रास्ता है जिसके द्धारा एगंलिग के स्थान तक पहुंचा जा सकता है |
हरसीपतन और नादौन के बीच का स्थान - - यहाँ अनेक बीते है जहाँ पालमपुर, सवराना, थूरल सड़क द्धारा आसानी से पहुंचा जा सकता है, प्रसिद्ध स्थान है- मन्ध खड्ड, संगम, लंबागाव तालाब, आलमपुर के पास नियोगल संगम तथा नादौन से 2 कि0 मी0 उपर अंबटर है |
चंबापतन – ज्वालामुखी से सड़क के माध्यम से पहुंचा जा सकता है | 8.5 कि0 मी0 के बाद तीन ache स्थान है चंबापतन गांव का तालाब, चम्बापतन गांव के विपरीत कलेश्वर बीट तथा ऊपरी चंबापतन| ये सभी स्थान सुरशित मछ्ली पकड़ने के स्थान है तथा अक दिन मे इन सभी स्थानो पर मछ्ली नही पकड़ी जा सकती |
कुरु- कुरु गाँव मे दो मछ्ली पीकेडीने के स्थान है जहाँ नदी के किनारों से पहुंचा जा सकता है | कुरु तलब एक छोटी खड्ड के ब्यास मे मिलने से बनता है |यह गाँव के एक की0 मी0 ऊपर है तथा यहाँ की असाधारण मछलिया पकड़ने का अनुभव रहा है | यहाँ पीआर 3 कि0 मी0 लंबे पैदल रास्ते से पहुंचा जा सकता है, जो देहरा- ज्वालामुखी सड़क पर स्थित है |
देहरा बांध और पौंग जलाशय :-
पौंग जलाशय देहरा बांध टीके वर्ष भर मछ्ली पकड़ने के अच्छे अवसर प्रदान कर्ता है | पौंग जलाशय मे पठानकोट से ज्सुर होकर, चंडीगढ़ से तलवाडा होकर, तथा धर्मशाला से देहरा व नगरोटा सुरियाँ होकर पहुंचा जा सकता है | आशनी धारा का गिरि नदी से मिलने टीके का क्षेत्र सोलन तथा सिरमौर जिले मे पड़ता है, तथा मछ्ली पकड़ने के रमणीय अवसर प्रदान करता है | सोलन से 30 किलो मीटर से दूर राजगढ़ मार्ग पीआर गौरा नाम का एसएचएन विशाल महाशीर के लिए जाना जाता था | यह जगह पूर्व कल के पटियाला शासक तथा ब्रिटिश मेहमानो के लिए अच्छा केन्द्र रही है | आज भी गौरा महाशीर पकड़ने के लिए अच्छी संभावनाये प्रदान करता है | इसके अतिरिक्त पौंटा साहिब मे यमुना नदी का कुछ भाग मछ्ली पकड़ने का अच्छा केन्द्र है |
लारजी :- राष्ट्रीय उच्च मार्ग 21 पीआर ओट से 7 कि0 मी0 की दूरी पीआर तीर्थन नदी मे ट्राउट एगंलिग का एक आदर्श स्थान है यहाँ पर हिमाचल प्रदेश लोक निर्माण विभाग का विश्राम गृह तथा मत्स्य विभाग का उप-निरीक्षण कार्यालय स्थित है| हिमाचल सरकार ने तीर्थन नदी को एगंलिग रिजर्व घोषित किया है, तथा तीर्थन व इसकी सहायक नदियों पर कोई भी जल विघुत परियोजना न लगाने का एतिहासिक निर्णय लिया है | विभाग द्धारा प्रतिवर्ष ब्राउन ट्राउट तथा रेनबो ट्राउट की अगुलिकाये इस नदी मे संग्रहित की जाती है | लारजी से 20 कि0 मी0 धारा के ऊपर के भाग मे लगभग सभी एगंलर संतुष्ट होकर जाते है |
एगंलर कृपया ध्यान दे :-
वैज्ञानिक प्रमाणों से साबित हुआ कि एगंलरों के उपकरणों द्धारा कुछ ANS ( Aquatic Nuisance Species) प्रजातियों जैसे कि व्हीलिर्ग रोग जीवाणु, डिडाइमो तथा न्यूजीलैण्ड एमडी स्नेल का स्थानान्तरण संभव है , अपने छिद्रपूर्ण आकार के कारण कंबलुमा जूते कुछ अन्य ANS केओ बीएचआई संचारित केआर एसएकेटीई एचएआई | मछ्ली स्वास्थ्य व्यवसाय से जुड़े लोग, जीव-विज्ञानिक वेता (biologist) तथा अन्य लोग अपने उपकरणो का रसायनिक उपचार केआर सकते है | परंतु ANS को खत्म करने के लिए कोई भी एकल रसायनिक उपचार नही है | इसलिए Trout Unlimited (TU) यह सलाह देता है कि एगंलर अपने उपकरणों को जांच कर साफ तथा सुखा रखे | नदी नालों के बीच यात्रा करते समय अपने उपकरणों को तलछट मलबे तथा पौधों के लिए जांच ले | जूतों की सिलवटों को साफ करने के लिए एक नर्म ब्रश का प्रयोग करे, तथा साफ पानी से अच्छे से धोये, हो सके तो गर्म पानी का प्रयोग करे | जब भी सम्भव हो, अपने उपकरणों को सुखा लें | सुखने की प्रक्रिया से कुछ ANS मिस्टर जाते है | इसलिए यह एक अच्छी प्रक्रिया है| इन सरल तरीकों से सभी ANS खत्म करने की गारंटी नही है, परंतु ये इन्हे फैलने से रोकेगा तथा हमारे कीमती ट्राउट संसाधनों की रक्षा करने मे सहायता मिलेगी |
याद रखने योग्य बाते :-
किसी भी मछ्ली, पौधे या जानवर, जीवित अथवा मृत को जल निकायों के बीच परिवहन न करे | सभी उपकरणो की जांच, सफाई कर ले तथा उन्हे सुखा रखें |
एंगलरों के लिए रोकथाम के तरीके :-
व्हर्लिग रोग :- मिकसोबोल्स सैरीब्रैलिस (Myxobolus cerebralis) (MC) एक परजीवी है, जो अंगलिकाओ को सिर व रीढ़ की हड्डी मे जाकर तेजी से फैलता है | जिसके कारण मछ्ली की मृत्यु हो जाती है | तब लाखों छोटे- छोटे व्विनाशी (MC) जीवाणु पानी मे छोड़ दिये जाते है जो इस निष्क्रिय रूप मे लगभग 30 साल तक जीवित रह सकते है | जब इन जीवाणुओ को ट्युबीफैक्स कीड़े द्धारा निगला जाता है, तब ये अति संक्रमित रूप ट्राई एकटिनो मिक्सौन (TAM) मे बदल कर छोड़ दिये जाते है | TAM पानी मे तब तक तैरते रहते है, जब तक वे ट्राउट को संक्रमित न कर ले | इसके कारण रीढ़ की हड्डी मे विकृत हो जाटी है, तथा आहार लेने की क्षमता भी घट जाती है व्हर्लिग रोग रेनबो तथा कटथ्रोट ट्राउट के लिए सबसे अधिक संक्रमित करने वाला है, परंतु यह अन्य सभी साल्मोनिड प्रजातियों को भी स्दंक्र्मित कर सकता है |
संक्रमित मछ्ली कैसे दिखती है ?
व्हर्लिग रोग के विशिष्ट लक्षण है – गहरे रंग की पुंछ, मुड़ी हुई रीढ़ तथा विकृत सिर (छोटा मुड़ा हुआ जबड़ा) छोटी मछलिया अनियमित तौर पर भी तैरती है | हालांकि अन्य रोग तथा अनुवांशिक स्थितियाँ भी इन लक्षणों का कारण हो सकती है | यदि आप इन लक्षणों वाली मछ्ली देखते है , जहाँ व्हर्लिग रोग कभी भी पाया गया है तो अपने राजी की मात्स्यिकी एजैंसी से संपर्क करे |
व्हर्लिग रोग कैसे फैलता है ?
व्हर्लिग रोग फैलने का प्रमुख कारण संक्रमित मछ्ली संग्रहण या उसका पानी मे प्राकर्तिक रूप से पाया जाना है | इसके अतिरिक्त पक्षियों तथा मनुष्यों द्धारा भी यह परजीवी फैलाया जा सकता है | नाव चालको तथा एगंलरों का इसमे विशेषकर योगदान होता है |
क्या व्हर्लिग रोग को फैलने से रोकने मे एगंलर या नावचलक सहायक हो सकते है ?
एगंलर, नावचलक तथा अन्य लोग व्हर्लिग रोग को फैलने से रोकने के लिए सहायक हो सकते है| निम्नलिखित सावधानियों से न केवल रोगों को फैलने से रोका जा सकता है , अपितु अन्य रोग फैलाने वाले जीवो तथा जलीय कीटों से भी बचा जा सकता है-
1 कभी भी जीवित मछ्ली एक पानी के स्त्रोत से दूसरे पानी स्त्रोत मे न ले जाए(हुच राज्यों मे यह गैर कानूनी है)|
2 ट्राउट व्हाइट फिश या सालमन के टुकड़ो को चारे के रूप मे प्रयोग न करे|
3 मछ्ली को आंतों तथा हड्डियों को सही तरीके से फैंके | कभी भी मछ्ली के अंगों को नदी या नालों के पास या उनमे नही फेंकना चाहिए | संक्रमित मछ्ली मे हजारों रोग जीवाणु हो सकते है जो साफ पानी मे भी किटाणु फैला सकते है | मछ्ली के अंगों को रसोई के कूडे के साथ भी नही फ़ैकना चाहिए क्योकि व्हर्लिग रोग के मिक्सोस्पोर ज़्यादातर अपशिष्ट जल उपचार प्रणाली (waste Water Treatment System) मे जीवित रह सकते है | इसके बदले इसे सूखे बेकार कचरे के पास फेंक देना चाहिए |
4 सभी उपकरणो से कचरा व मलवा धो लेना चाहिए तथा नाव से पानी निकाल लेना चाहिए | यह अन्य जलीय जीवाणुओ व कीटों के परिवहन को भी रोकता है |
5 हालांकि उपरोक्त सभी सावधानिया आप के उपकरणो से ज़्यादातर जीवाणुओ को खत्म कर सकती है परंतु निम्नलिखित उपाय अतिसंक्रमित पानी मे सहायता कर सकते है , अपने जूतो को तथा अन्य उपकरणो को धोकर सीखा लें | प्राय यह उपाय परजीवी के TAM चरणों को खत्म करने के लिए पर्याप्त है|
6 क्लोरीन (घरेलू ब्लीच) एक प्रभावी रोगाणुनाशी है तथा उचित मात्रा मे प्रयोग करने पर परजीवी के लगभग सभी चरणों को खत्म क्र सकता है | क्लोरीन बहुत तेज रासायनिक है तथा लंबे समय के इस्तेमाल से आपके उपकरणो को नुकसान पहुंचा सकता है | इसलिए अपने उपकरणो को विसंक्रमित करने के बाद साफ पानी से धोकर छाया मे सूखा लें |
7 TAM को खत्म करने के लिए एक भाग क्लोरीन तथा 32 भाग पानी का प्रयोग करें | पूर्ण विसंक्रमण हेतु इसे लगभग 10 मिनट तक छोड दें |
8 मिक्सोस्पोर मलवे मे पाये जाते है तथा इन्हे उपकरणो से खत्म करना बहुत कठिन होता है | 50 प्रतिशत घोल (एक भाग क्लोरीन तथा एक भाग पानी ) मे अपने उपकरणो को डुबोये या इसे पोछे |
9 10 प्रतिशत घोल (एक भाग कलोरीन तथा 9 भाग पानी)- इस घोल मे अपने उपकरणो को 10 मिनट तक डूबोये | क्वार्टनरी अमोनियम कंपाउंड भी परजीवी के दोनों चरणों को नष्ट क्र सकते है | यह रोगाणुनाशक बाजार मे उपलब्ध होते है जिनसे मछ्ली पकड़ने के उपकरण विसक्रमित किए जा सकते है |
10 उपलबता हुआ गर्म पानी इतना ही प्रभावी होता है | इसे उपकरणो पर सीधा डाल दे तथा ठंडा होने दे |
राज्य सरकार तथा अन्य संस्थाए किस प्रकार सहायता कर सकती है ?
1 नाव रोकने के स्थान पर तथा संक्रमित जलों वाले मछ्ली पकड़ने के स्थानो पर उपकरणों को धोने के लिए साफ पानी तथा नाली का प्रबंध करवाया जा सकता है |
2 नाली के पास जूतो को धोने के लिए ब्रश उपलब्ध कराया जा सकता है |
3 मछ्ली पकड़ने के लोकप्रिय स्थानो पर व्हर्लिग रोग वाले जलों का नक्सा दिखाया जा सकता है जिससे एगंलरों को संक्रमित जलों के बारे मे जानकारी दी जा सके |
4 ANS तथा MC को फैलने से रोकने के लिए निर्देश जारी करें |
सौजन्य:- ट्राउट अनलिमिटिड (TU)