महासीर मछली :-
विश्व प्रसिद्ध क्रीड़ा मछली के रूप में महासीर (Mahseer) का महत्व भली-भान्ति ज्ञात है | यह समूह अनेक रंगों में पाया जाता है जैसे कि तांबा, सुनहरा, चांदी के समान तथा गहरा काला | महासीर भारत, पाकिस्तान, म्यामार, बांगलादेश, श्रीलंका तथा थाईलैंड में पायी जाती है | सात विभिन्न पाई जाने वाली प्रजातियों में प्यूटी टोर (Putitora) अथवा गोल्डन (Golden) महासीर सबसे अधिक पसंद की जाती है क्योंकि यह प्रजाति मुख्य मात्स्यिकी का पूरे हिमालयी क्षेत्र में उत्तम साधन है | इस प्रजाति को ग्रेहाऊंड (Greyhound) अथवा थिक लिपड (Thick lipped) महासीर भी कहा जाता है तथा 70 से 80 किलो ग्राम का अधिकतम भार होता है | एंगलर गोल्डन महासीर को क्रीड़ा मछलियों में से सबसे बेहतर समझते हैं और यह असंख्य भारतीय और विदेशी दोनों शिकारियों के लिए मनोरंजन का एक स्त्रोत है | थॉमस ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “द रौड इन इंडिया” में क्रीड़ा मात्स्यिकी के लिहाज से महासीर को सालमन (Salmon) से कहीं बेहतर बताया है | स्थानीय मछुआरों के लिए भी महासीर काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका बड़ा आकार, सुडौल शरीर, ऊंचा आर्थिक मूल्य तथा सैल्फ लाइफ होती है |
खतरे व महासीर की वर्तमान स्थिति (Threat and the recent status of mahseer catches):-
कुछ वर्षों में इन्सानी दखल के कारण महासीर को अनेक खतरों का सामना करना पड़ रहा है जैसे कि नदियों पर बांधों का निर्माण तथा उनका अत्यधिक शोषण | अनियंत्रित मछली पकड़ना तथा विध्वसंक मछली पकड़ने के उपकरणों ने नदियों की जनसंख्या को बुरी तरह प्रभावित किया है तथा बांधो के निर्माण के कारण इस प्रवासीय प्रजाति के प्रजनन तथा आहार क्षेत्र प्रभावित हुए हैं | बांध नदियों की निरंतरता को वाधित करते हैं | यह जटिल प्रभावों को जन्म देता है जो नदीय पारिस्थिति के भौतिक तथा जीव-सम्बन्धी पहलुओं को प्रभावित करता है | प्रवास न होने के कारण स्थायी तथा कभी ठीक न होने वाली हानि मछली को पहुंचती है जिसके कारण पूरी तरह प्रजाति का सफाया हो सकता है | सतलुज, गिरी, ब्यास, चिनाब तथा उनकी सहायक नदियों से महासीर की निरंतर गिरती पकड़ साफ़ या स्पष्ट तौर पर पंडोह, चमेरा पौंग भाखड़ा तथा गिरी बाटा के दुष्प्रभावों को दिखाती है | ये बांध महासीर के प्रजनन के लिए प्रवास में बाधा उत्पन्न करते हैं | इसके अतिरिक्त नदी घाटी की परियोजनाओं के कारण आये बदलावों से भी महासीर प्रभावित होती है | इसमें ढलान, नदीय तल की सरंचना, बजरी का डूबना तथा नदीय पौधों या पारिस्थितिकी में बदलाव होना प्रमुख है | ज्यादातर दुष्प्रभाव धाराओं के ऊपरी भागों में देखने को मिलते हैं | धारा के निचले भाग में स्थितियां पूरी तरह बदल जाती है क्योंकि पानी का बहाव कम हो जाता है | इस बहाव के दुष्प्रभाव कई किलोमीटर तक देखे जा सकते हैं जो मछली के तैरने में कठिनाई उत्पन्न करते हैं | सीमा से अधिक मछली पकड़ना, जाल लगाना, डायनामिक या बिजली से मछली मारने के कारण भी राज्य के नदी तथा धाराओं में महासीर की उपलब्धता कम हुई है | अवैध शिकारियों द्वारा अधिक से अधिक मछली पकड़ने की लालसा में राज्य की सैंक्चुरी वाले क्षेत्र भी प्रभावित हुए हैं | इसके अतिरिक्त नदियों में बड़ी मछली कम होने पर छोटी मछलियों पर दबाव होता है जिसके फलस्वरूप जिन धाराओं में पहले अच्छी फसल होती थी वर्तमान में निराशाजनक स्थिति है | कई एंगलर एसोसियेसन ने अन्य राज्यों में भी यहीं स्थिति दर्शायी है | किसी समय महासीर से भरी गिरी, अश्विनी, बिनवा, न्यूगल, ब्यास इत्यादि नदियां आज महासीर में भारी गिरावट दर्शाती है जो पतिवर्ष निराश एंगलरों की संख्या में वृद्धि कर रहा है | प्रदेश के जलाशयों में भी महासीर की संख्या में भारी गिरावट देखी गयी है | कभी महासीर का गोदाम माना जाने वाला गोबिंद सागर जलाशय आज सिल्वर कार्प जलाशय में परिवर्तित हो चुका है | उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार 1984-95 तक महासीर लगभग 9% पायी जाती थी जो 1999-2000 में गिरकर 1% हो गई है परन्तु पौंग जलाशय में पिछले दो दशक से महासीर की पकड़ में 60-90 टन की स्थिरता देखी गयी है | सन 1999-2000 में 90 टन महासीर पकड़ी गयी जो कुल मछली का 20% है | इसके अतिरिक्त पछले 15 वर्षों में पौंग जलाशय से पकड़ी गयी महासीर का औसतन आकार 1.5 -1.7 किलो ग्राम रहा है | इसके विपरीत गोबिंद सागर में पकड़ी गयी महासीर का औसतन आकार पिछले कुछ वर्षों में ०.६ किलो ग्राम तक गिरा है परन्तु विभाग द्वारा चलाये गए अनेक प्रबंधन कार्यक्रमों के फलस्वरूप महासीर का आकार १.२ किलो ग्राम तक बढ़ा है |
संरक्षण (Conservation) :-
हमारे प्राकृतिक संसाधनों में मात्स्यिकी सबसे उपेक्षित संसाधन रहा है तथा महासीर संसाधन कोई अपवाद नहीं है | मछली की जनसंख्या को बनाए रखना अथवा उनके भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों को पुनर्स्थापित करना इत्यादि के उद्देश्य से जलस्त्रोतों के प्रबंधन को जलीय संसाधनों का सरंक्षण कहा जाता है | इसे सहिष्णुता द्वारा या क्रियाशील होकर किया जा सकता है | पहली स्थिति में क्षेत्रों को सुरक्षित कर उनकी यथास्थिति बनाए रखना है जबकि दूसरी स्थिति में मछली पकड़ने से हुई हानि को कम करके मछली की पकड़ को बनाए रखने के लिए प्रयास किये जाते हैं | निर्धारित स्थानों की देखरेख, कुछ क्षेत्रों को सुरक्षित जल घोषित करना, बन्द सीजन लागू करना, नदियों में मछली पकड़ने पर प्रतिबन्ध लगाना, कुछ क्षेत्रों को केवल कुण्डी डोरी के लिए आरक्षित करना, बैग तथा कैच लिमिट लागू करना भी सहिष्णुता से कार्य करने में आते हैं | किसी विशेष प्रकार की मछली की वृद्धि तथा पुनर्वास के लिए यह आवश्यक होता है |
फार्म पर पाले गए मत्स्य धन को मछली की मात्रात्मक उन्नति के लिए स्थानांतरित करना एक क्रियाशील संरक्षण है | नदियों या जलाशयों के समीप फार्म या हैचरियों का निर्माण करके महासीर के कृत्रिम प्रजनन द्वारा जलस्त्रोतों में मत्स्य धन को बढ़ाया जा सकता है | यह किसी भी विशेष मात्स्यिकी को पुनःस्थापित करने में या बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है | पर्यावरण के भौतिक पुनर्स्थापन के लिए संग्रहण के तथा मछली का स्थान्तरण एक मूल्यवान प्रबंधन साधन हो सकता है | कई राष्ट्रीय संसाधनों में तथा महाराष्ट्र में लोनावाला (Lonavala) फिश फार्म में महासीर के कृत्रिम प्रजनन के प्रयोग सफलतापूर्वक किये गए हैं | प्रजनन में सफलता से महासीर मात्स्यिकी को पुनर्जीवित करने की नयी आशा उत्पन्न हुई | गुजरे जमाने की मात्स्यिकी को पुनर्जीवित करने तथा इन प्रयासों को और तेज करने के लिए नियंत्रित महासीर बीज संग्रहण परियोजना की आवश्यकता है | महासीर को हिमाचल के जलों में पुनर्स्थापित करने के लिए राज्य सरकार की कार्यप्रणाली की आवश्यकता है | विभिन्न नदियों, धाराओं, सहायक नदियों, झीलों तथा जलाशयों में महासीर को पुनर्स्थापित करने के लिए हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयासों को निम्न प्रकार से संक्षेपित किया जा सकता है|
1. वैधानिक प्रयास (Legislative action) :- जैसे कि माना जाता है कि महासीर को अधिकतम हानि प्रजनन काल के दौरान पहुंचाई जाती है | महासीर प्रजनन के लिए झुण्ड में नदी की ऊपरी धाराओं की ओर प्रवास करती है | इसके कारण कई अनैतिक मछुआरों को अण्डों से लदी वयस्क मादाओं को जाल, लकड़ी, भाला इत्यादि द्वारा मारने का अवसर मिल जाता है तथा इस अवस्था में मादा मछली इन विध्वंसक मछली पकड़ने के तरीकों में आसानी से फंस जाती है | इन बातों को ध्यान में रखते हुए हिमाचल प्रदेश मात्स्यिकी अधिनियम में एक विशेष धारा का प्रावधान है जिसके अंतर्गत प्रजनन काल में मछली पकड़ना गैर जमानती अपराध है जिससे तीन वर्ष तक की कैद हो सकती है |
इसके अतिरिक्त वैज्ञानिक शोधों पर आधारित हिमाचल प्रदेश मात्स्यिकी नियमों के अंतर्गत महासीर का अधिकतम पकड़े जाने योग्य आकार 300 मिली लीटर से बढ़ाकर 500 मिली लीटर किया गया जो लगभग 1.2 किलो ग्राम होता है | इससे मादा महासीर को पकड़े जाने से पूर्व कम से कम एक बार प्रजनन का अवसर मिल जाता है | 1998 में मात्स्यिकी अधिनियम में इस धारा को सम्मिलित किया गया तथा पौंग डैम में औसतन भार 1.2 किलो ग्राम से बढ़कर 1.7 किलो ग्राम तक तथा गोबिंद सागर जलाशय में 0.6 से बढ़कर 0.9 किलो ग्राम हो गया है |
2. शोध प्रयास (Research efforts) :- भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र द्वारा प्रायोजित “गोल्डन महासीर का प्रजनन तथा बीज उत्पादन” नामक कार्यक्रम प्रदेश सरकार तथा पंजाब विश्व विद्यालय द्वारा शुरू किया गया | इस परियोजना के अंतर्गत महासीर मत्स्य धन तैयार करने के अतिरिक्त मत्स्य फार्म दयोली, बिलासपुर में एक आधुनिक महासीर हैचरी स्थापित की गई है | बहुत कम सफलता के साथ कुछ महासीर प्रजनन प्रयत्न किये गए हैं |
3. राष्ट्रीय महासीर मछली फार्म को स्थापित करना (Setting up National Mahseer Fish farm) :- हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा किये गए प्रयासों व महासीर के महत्व को समझते हुये भारत सरकार ने 2.00 करोड़ वित्तीय सहायता के साथ प्रदेश में राष्ट्रीय महासीर मछली फार्म को स्थापित करने को मंजूरी दे दी है | यह परियोजना लगभग पूरी होने के चरण में है | सभी संभावनाओं को देखते हुए यह फार्म महासीर बीज की मांग को पूरा करने में समर्थ होगा | दोनों क्रीड़ा व वाणिज्यिक एंगलरों के नजरिये से पहाड़ों की एक बहुमूल्य फिश के कारण महासीर को पुनःस्थापित व सुरक्षित करने की आवश्यकता है | संरक्षित करना ही सुरक्षित रखने का सर्वोत्तम माध्यम है | स्थानांतरण तथा संरक्षण की मिली-जुली विवेकशील क्रिया प्रणाली अर्थपूर्ण रहेगी | केवल इसी माध्यम से खतरे में पड़ी इस क्रीड़ा मछली को विलुप्त होने से बचाया जा सकता है तथा अनेक नदियों, धाराओं, तालाबों और झरनों को जलीय मरूस्थल बनने से रोका जा सकता है |